कौवा और उल्लू – पंचतंत्र की कहानि

कौवा और उल्लू – पंचतंत्र की कहानि

बहुत पहले समय की बात है एक जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ था. उस पेड़ पर एक कौवा रहता था. उस काव्य के साथ और भी उसके दोस्त रिश्तेदार कव्वे उस बड़े बरगद के पेड़ पर अपना निवास करते थे. उसी पेड़ पर कौवा का राजा मेघवाल भी रहता था.

बरगद के पेड़ से कुछ दूर एक पहाड़ी थी, जहां पर बहुत सी गुफा थी इन गुफाओं में बहुत उल्लू रहा करते थे. उल्लू को भी एक राजा था उसका नाम हरिमर्दन था.

हरि मर्दन बहुत ही पराक्रमी राजा था. कौवा और उल्लू की आपस में नहीं बनती थी. हरिमर्दन ने कहा था कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन अगर कोई है तो वह यह कौवा है.

हरी मर्दन सभी कौवा से नफरत किया करता था. उसे कौवा से इतनी नफरत थी कि हर दिन एक काव्य को मारे बगैर वह खाना नहीं खाता था. ऐसे ही कई दिन बीत गए.

बरगद के पेड़ पर मौजूद कौवो की संख्या कम होने लगी. इसे देखकर राजा मेघवाल चिंतित हो गया. उसने सभी की एक सभा बुलाई. सभा में इस विषय पर बात हो गई और सभी को अपने अपनी राय देने के लिए कहा गया. सभी को इस समस्या का निवारण कैसे होगा इसकी भी जानकारी प्रदान करने के लिए कहा गया.

उसने सभा में कहा कि हमारी संख्या कम होने का कारण यह उल्लू है. यह हम पर रात को आक्रमण करते हैं, जब हम अपने आंख से रात को देख नहीं पाते. हम जब जवाबी हमला सुबह करने जाते हैं तो यह अपनी गुफा में अंधेरे में छुप जाते हैं और हम कुछ नहीं कर पाते.

इसी वजह से हमारा जीवन अब सुरक्षित नहीं रहा. हमारी संख्या भी घट रही है. अपनी बात रख कर उसने सभी होशियार और बुद्धिमान कौवा को कहा तुम अपनी राय हमें दो ताकि हम इस समस्या का हल निकाल सके.

एक डरपोक कौवा बोला, हमें उल्लू के साथ समझौता करना चाहिए. वह जो भी शर्ते कह दे हमें वह मान लेनी चाहिए. इस पर अन्य कवर ने अपना विरोध प्रकट किया.

एक और कौवा बोला कि, हमें इन उल्लू से बात नहीं करनी चाहिए हमेशा उन सभी पर आक्रमण कर देना चाहिए.

तीसरा कौवा बोला इससे अच्छा तो यही है कि हमें यह जगह ही छोड़कर कहीं और जाना चाहिए. जिससे इस समस्या का हल खत्म हो जाए.

उसमें एक होशियार का हुआ था. उसने अपनी सलाह दी कि, हमें अपनी जगह छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है, इससे अच्छा यही है कि हम अन्य प्राणी और पंछियों की मदद लें. हम अन्य प्राणियों के पास चले जाए और उनसे मदद की गुहार लगाई जाए.

इन सभी में एक और होशियार और बुद्धिमान कौवा बैठा था. वह इन सभी की बातें सुन रहा था. मेघवाल बोला तुम चुपचाप क्यों बैठे हो मुझे तुम्हारी भी राई चाहिए.

इस पर बुद्धिमान कौवा बोला, अगर शत्रु ताकतवर है तो हमें छल नीति से उसका सामना करना चाहिए. इस पर राजा बोला ठीक से बताओ हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है. कौवा बोला कि, आप मुझे गाली दीजिए और मुझ पर आक्रमण कीजिए.

ऐसा कहते हुए बुद्धिमान कौवा राजा की डाल पर जाकर बैठ गया और उनकी कान में कहा की हमें छल नीति से काम करना है. इसके लिए आपको मुझ पर आक्रमण करने का नाटक करना ही होगा.

आक्रमण करने के बाद आप सभी कौवा को लेकर पर्वत की ओर प्रस्थान करें. वहां पर आप मेरी प्रतीक्षा करें. मैं आपसे विपरीत होकर उल्लूओ के दल में शामिल हो जाऊंगा. उनके विनाश के लिए सामान इकट्ठा करूंगा.

बुद्धिमान कव्वे ने जैसा कहा था राजा ने बिल्कुल ही वैसा किया. उनका नाटक चालू हो गया. उन दोनों का झगड़ा चालू हो गया. अन्य कौवे चिल्लाकर बोले कि इस गद्दार को मार दो.

राजा ने अपने पंख से बुद्धिमान काव्य को मार लगा दी. पंख से लगे हुए मार के कारण कौवा नीचे जमीन पर गिर गया. राजा  ने कहा कि अब इस कौवे के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा. इसे अकेला छोड़ दो.

इनका झगड़ा वहां पर छुप कर बैठे हुए उल्लू देख रहे थे. जासूसों ने राजा को घटी हुई घटनाएं के बारे में सूचित कर दिया. राजा को बताया कि, उनमें फूट पड़ गई है. ऐसा सुनते ही उल्लू के सेनापति ने कहा यही मौका है कि कौवा पर आक्रमण किया जाए.

उल्लू के राजा को भी सेनापति ने कही हुई बात सही लगी. उसने तुरंत ही आक्रमण के आदेश दे दिए. हजारों उल्लू की सेना बरगद के पेड़ के पास आक्रमण करते हुए पहुंच गई, परंतु उन्हें वहां एक भी कौवा नजर नहीं. योजना के अनुसार सभी कौवे पर्वत की ओर प्रस्थान कर चुके थे.

उल्लू ने कहा की कौवे हम से भागकर हमारा मुकाबला न करते हुए पर्वत की ओर चले गए. सारे उल्लू ने अपनी जीत हुई ऐसा समझ कर आनंदित हो गए.

बुद्धिमान कौवा नीचे जमीन पर पड़ा था. वह उल्लू की सभी बातें सुन रहा था. उसने कांव-कांव कर के उल्लू की नजर उसके ऊपर रोकने की कोशिश की थी.

तभी जासूस उल्लू में से एक ने उस कौवा को पहचान लिया और उस ने उसे राजा के सामने पेश किया. राजा ने कहा तुम तो वही कौवा हो जिसे राजा ने धक्के निकालकर नीचे गिरा दिया था. बुद्धिमान कौवा कहता गया और राजा सुनते गए. उसने राजा से विनती किए कि मुझे अपनी शरण में लीजिए.

राजा का नीति सलाहकार था उसने कहा कि, शत्रु को अपनी शरण में लेना मूर्खता है. लेकिन राजा ने उसकी बात में मानते हुए उसको अपने साथ रख लिया.

बुद्धिमान कौवे ने कहा मैं तो चौखट पर ही आपका सेवक बनकर काम करना चाहता हूं. राजा ने भी उसे दरवाजे पर काम करने के लिए अनुमति दे दी.

ठंड का मौसम बढ़ रहा था. ऐसे में कौवे ने राजा से विनती की कि उसे ठंड से बचने के लिए लकड़ी या इकट्ठे करने के लिए अनुमति दी जाए. राजा ने भी उसको अनुमति दे दी. अब कौवे ने ढेर सारी लकड़ी इकट्ठा कर ली.

अब सही समय था कि बदला लिया जाए. एक दिन सुबह जब सब सारे उल्लू सो रहे थे. उसी समय कौवे ने उड़ान लगाई और वह अपने राजा के पास पर्वत पर चला गया. उसने कहा की सभी अपने चोंच में जलती हुई लकड़ी लेकर उसके पीछे चले आए.

सभी ने जलती हुई लकड़ी लेकर उस गुफा की ओर प्रस्थान किया. जलती हुई लकड़ी लेकर वह गुफा के अंदर चले गए जहां सभी उल्लू सो रहे थे.

बुद्धिमान कौवे ने इतनि लकड़ी इकट्ठा कर लि थी कि, वहां पर एक भीषण आग लग जाए. सभी उल्लू सोने के कारण उन्हें क्या हो रहा है इसका कुछ पता नहीं चल रहा था.

गुफा में भीषण आग लग गई आग में सभी उल्लू जलकर खत्म हो गए इस प्रकार बुद्धिमान कौवे ने अपना बदला पूरा कर लिया.

सीख – शत्रु को अपने घर में पनाह देना मतलब खुद की मौत को निमंत्रण देना है.

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एकता का बल

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