पन्हाळा किले का इतिहास पढ़े

नमस्कार दोस्तो, आज हम एक ऐसे किले के बारे में जानेंगे जो की, छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध करने की कर्मभूमि रहा। जहां से उन्होंने अनेक युद्ध लड़े और जीत लिए। तो मेरा नाम है निलेश और आप सबका स्वागत है एक howdothis में। आज हम बात कर रहे है panhala fort history की।

पन्हाला किला १२ वी सदी में राजा भोज ने बनवाया था। इस किला महाराष्ट्र राज्य में कोल्हापुर जिले ने स्थित है। आज हम panhala fort history जानेंगे और इस किले का इतिहास समझने की कोशिश करेंगे।

पन्हाला किले का इतिहास:

panhala fort history

जैसा कि ऊपर हमने बताया है की, इस किले को रहा भोज ने १२ वी शताब्दी में बनवाया था। इस किले का आकर त्रिकोणी ढांचे जैसा है। इस किले ने बहुत से शासक देखे है। आदिलशाही में ये किला छत्रपति शिवाजी महाराज का एक प्रमुख किला था। इतिहास ने सबसे ज्यादा किलो का पुनर्वसन शिवाजी महाराज के कार्यकाल में हुए थे।

१२ वी शताब्दी में राजा भोज ने इस किले का निर्माण किया। आज भी इस किले में बनाई गई अंदरूनी कलाकारी राजा भोज के सामर्थ्य और कलाकारी का दाखला देती है। कुछ साल बीत जाने के बाद देवगिरी यादवों ने इस किले पर आक्रमण किया और राजा भोज को हार का सामना करना पड़ा। यादव ने इस किले की देखभाल अच्छे तरीके से नहीं की और स्थानिक शासकों द्वारा इस किले पर शासन चलता रहा।

सन १४९० में ये किला आदिलशाही के कब्जे में चला गया। उन्होंने इस किले को सुरक्षित करने के लिए इस किले पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने इस किले की दरवाजे और दीवारे बनाने पर खास ध्यान दिया था।

सन १६६० में बीजापुर के अफजलखान की मौत हो गई। इसका फायदा उठाकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर से पन्हाला किले को छीन लिया था। आदिलशाह भी चाहता था की इस किले को वापस हासिल करे। इसलिए उसने इस किले को हासिल करने के लिए सिद्धि जोहर को भेज दिया पर वो भी नाकामयाब रहा और वापस लौट गया।

ये लड़ाई लगभग ६ महीने चली। इसी दौरान किले में मौजूद सामान खतम हो रहा था। मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज को उस समय बच निकलने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था। किले पर आक्रमण जारी था। मराठी सैनिक जिन्हे मावलो के नाम के पुकारा जाता है। उन्होंने शिवाजी महाराज को विशालगढ़ की और जाने की प्रार्थना की। एक रात छत्रपति शिवाजी महाराज विशालगढ़ की और निकल गए।

दूसरी तरफ मुगलों को रोकने की जिम्मेदारी बाजीप्रभु देशपांडे और शिवा काशिद के कंधे पर थी। इन दिनों ने अपने मरते दम तक लड़ाई लड़ी। शिवा काशिद दिखने में शिवाजी महाराज के जैसे थे। ३०० लोगो की सेना लेकर बाजीप्रभू और शिवा काशिद १२००० लोगो का सामना कर रहे थे। बाजीप्रभु ने अपनी आखरी सांस तक किले को बचाने की कोशिश की और अंत में वो शहिद हो गए। आदिलशाह ने इस किले को जीत लिया था।

लेकिन फर्ज सन १६७३ में आदिलशाह से शिवाजी महाराज ने इस किले को जीत लिया। जब शिवाजी महाराज का शासन था तो उस समय किले में १५०० घोड़े और २० हजार सेना थी। १६८० में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के राजा बन गए।

कुछ सालो के बाद जब मुगलों के शासक तकरीब खान ने संभाजी महाराज को बंदी बना लिया तो फिरसे ये किला मुगलों के पास चला गया।
सन १६९२ विशालगढ़ के प्रमुख प्रतिनिधि के परशुराम पंथ के मार्गदर्शन में काशी रंगनाथ सरपोरदार ने इस किले को मुगलों से जीत लिया।
सन १६९३ में फिर से राजा औरंगजेब ने इस किले को हासिल कर लिया। इसी दौरान राजा राम को ये किला छोड़कर जिंजी जाना पड़ा था।

राजा राम को किला इतनी जल्दी छोड़ना पड़ा की उनकी पत्नी ताराबाई वहा रह गई। रानी ताराबाई ने किले की देखभाल की और ५ साल बाद उनकी मूलाखात राजा राम से हुई। राजा राम ने जिंजी किले से सेना भेजी और पन्हाला किले पर परचम लहराया।

सन १७८२ तक ताराबाई के साम्राज्य का ही शासन रहा। इस दौरान उन्होंने कई लड़ाई लड़ी। उन्होंने बेटे शिवाजी दूत्य को पन्हाला का अधिपति घोषित किया। इस दौरान पन्हाला को कोल्हापुर की राजधानी बनाया गया।

अंग्रेजों से शासन काल में कई बार पन्हाला को लेने कोशिश की गई। कैस बार क्रांति कारियो द्वारा पन्हाला हासिल किया गया। १ दिसंबर १८४४ को अंग्रेजो ने डेलामोट के नेतृत्व में फौज भेजकर पन्हाला काबिज कर लिया। किले को कब्जे में ले लिया और तब से पन्हाला पे अंग्रेजी हुकूमत ने फौज प्रस्थापित कर दी। सन १९४७ तक कोल्हापुर पर इनका ही नियंत्रण था।

जब अंग्रेजी हुकूमत को १९४७ को भारत छोड़ना पड़ा। लेकिन इस से पहले उन्होंने इस किले के रक्षण के लिए ७ किलोमीटर दूर राज तट बनाया। इसी के साथ सहयाद्रि के गोद में बसे इस किले के अंदर तीन द्वार बनाई गई। ये सभी एक ही आकार के है और एक जैसे ही दिखते है।

महाराष्ट्र में लोग ट्रैकिंग करने के लिए सबसे पहले पन्हाला ही आते है। पन्हाला से पावन खिंड ट्रैकिंग के लिए एक बढ़िया ठिकान है। लाखो लोग हर वर्ष यह ट्रैकिंग करने आते है तथा किले को देखते है। ट्रैकिंग का ये रास्ता लगभग ५० किलोमीटर लंबा है।

इस किले में क्या क्या हुआ ये जानने के लिए इतिहासकार, कलाकार, आम आदमी, और साहित्यकार इस किले को देखने आते है और इसकी बारीकियां जान लेते है।

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अगर आपने भी अभि तक इस किले को नहीं देखा तो आज ही ट्रैकिंग का प्लान बनाए और किले के दर्शन करे। panhala fort history की जानकारी अच्छी लगी तो शेयर करे और ऐसी ही नई आर्टिकल पाने के लिए सब्सक्राइब करे। धन्यवाद।

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